एक नहीं है हिस्टीरिया और मिरगी

एक नहीं है हिस्टीरिया और मिरगी

आम लोगों के बीच भूत-प्रेत की लीला के रूप में प्रचारित बीमारी मिरगी के रोगी संभवतः पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में ही हैं। दिल्ली के जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. विवेक कुमार के अनुसार मिरगी के बारे में सही तथ्‍यों के मुकाबले भ्रांतियां अधिक हैं। जानकारी के अभाव में ही लोग इसे भूत-प्रेत की लीला समझने लगते हैं। हकीकत यह है कि यह मस्तिष्क में उठने वाले विद्युत तरंगों से जुड़ी बीमारी है। इन तरंगों के कारण ही मिरगी का दौरा पड़ता है।

जोर की चीख आना, दांत भिंच जाना, जीभ कट जाना, अचानक पेशाब निकल आना, शरीर का कोई हिस्सा जोर-जोर से कांपने लगना, कुछ देर के लिए याद्दाश्त गुम हो जाना आदि मिरगी के दौरे के लक्षण हैं। रोगी में कई बार पालगपन के लक्षण भी दिखते हैं।

डॉ. कुमार की मानें तो मिरगी का दौरा पड़ने पर चप्पल सुंघाना या दांतों में चम्मच अथवा लकड़ी डालने जेसे नुस्खे फायदेमंद नहीं होते। इस प्रकार के उपाय करने से बेहतर है कि मरीज ने यदि टाई पहन रखी हो तो उसे ढीली कर दें  उसे एक करवट लिटा दें ताकि मुंह से निकलने वाला झाग अंदर न जाए। उसे हवादार जगह पर लिटा दें। चंद मिनटों के बाद मरीज की स्थिति खुद ठीक हो जाएगी।

मिरगी के मामले में 70 से 80 फीसदी मरीज पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। इनमें से 20 से 30 फीसदी मामले बच्चों से संबंधित होते हैं जो उम्र के साथ ठीक हो जाते हैं। तीस से चालीस फीसदी मामलों में तीन से चार वर्षों में पड़ने ठीक हो जाते हैं। दस फीसदी मामलों में जिंदगी भर दवा खानी पड़ सकती है और सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है। बीस फीसदी मामले ऐसे होते हैं जिनमें दौरे पूरी तरह कभी खत्म नहीं होते हैं।

यहां ध्यान देने की बात यह है कि हिस्टीरिया और मिरगी दो अलग-अलग चीजें हैं। हिस्टीरिया का दौरा तभी पड़ता है जब मरीज के आस-पास कुछ लोग मौजूद हों। मरीज जब अकेला हो तो उसे हिस्टीरिया का दौरा नहीं पड़ता है जबकि मिरगी का दौरा मरीज को कभी भी पड़ सकता है।

जहां तक मिरगी के मरीजों का सवाल है तो वह डॉक्टर की सलाह के बिना कभी दवा लेना बंद न करें। नींद 7 से 8 घंटे जरूर लें और बीमारी से संबंधित एक कार्ड अपने पास हरदम रखें ताकि यदि कभी अकेले में दौरा पड़े तो लोगों को बीमारी के बारे में तुरंत जानकारी मिल सक। इस बीमारी में योग भी लाभदायक होता है।

प्रसिद्ध योग गुरु सुनील सिंह के अनुसार योग द्वारा मिरगी को नियंत्रण में रखा जा सकता है। इसके लिए प्रतिदिन सर्वांग आसन, भुजंगासन, उष्‍ट्रासन, पश्चिमोत्तानासन, पाद अनुष्ठासन, उत्थित उत्कट आसन करना चाहिए। यह सभी आसन बहुत आसान हैं और इन्हें करने में कोई खतरा नहीं है। हां, एक बात का ध्यान जरूर रखें कि किसी भी आसन को करने में अधिक जोर न लगाएं। इसके अलावा अनुलोम-विलोम ओर कपालभाथि प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। तामसिक माने जाने वाले फास्ट फूड का सेवन न करें।

महर्षि आयुर्वेद के वरिष्ठ चकित्सक अच्युत कुमार त्रिपाठी के अनुसर मिरगी रोग आयुर्वेद में अपस्मार रोग कहा गया है। यह मानसिक रोग है जो वायु दोष के बढ़ने, भय, क्रोध, शोक तथा उद्वेग जैसे मानसिक कारणों से होता है। कभी-कभी शिरोभिघात, मस्तिष्कावरण शोध, मस्तिक रक्तस्राव जैसे शारीरिक कारणों से शरीर में सत्वगुण की हीनता ओर तम की अधिकता होती है।

दुर्बल मन वाले मनुष्यों में इसका प्रकोप अधिक पाया जाता है। चरक के अनुसार जो व्यक्ति अहितकर तामसिक भोजन करता है उसके सत्वगुणों का नाश होता है ओर तम गुणों की उत्‍पत्ति होती है। इनकी वजह से ही मानसिक कारण उत्पन्न होते हैं जो कि अपस्मार का कारण बनते हैं इस रोग से बचने के लिए मन को स्वस्थ्य बनाने का उपाय करना चाहिए। रोज करीब 40 मिनट का समय दिमाग को विश्राम देने के लिए पर्याप्त हो सकता है।

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